POETRY

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

 

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जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

जिस दिन मेरी चेतना जगी मैंने देखा
मैं खड़ा हुआ हूँ इस दुनिया के मेले में,
हर एक यहाँ पर एक भुलाने में भूला
हर एक लगा है अपनी अपनी दे-ले में
कुछ देर रहा हक्का-बक्का, भौचक्का-सा,
आ गया कहाँ, क्या करूँ यहाँ, जाऊँ किस जा?
फिर एक तरफ से आया ही तो धक्का-सा
मैंने भी बहना शुरू किया उस रेले में,
क्या बाहर की ठेला-पेली ही कुछ कम थी,
जो भीतर भी भावों का ऊहापोह मचा,
जो किया, उसी को करने की मजबूरी थी,
जो कहा, वही मन के अंदर से उबल चला,
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

मेला जितना भड़कीला रंग-रंगीला था,
मानस के अन्दर उतनी ही कमज़ोरी थी,
जितना ज़्यादा संचित करने की ख़्वाहिश थी,
उतनी ही छोटी अपने कर की झोरी थी,
जितनी ही बिरमे रहने की थी अभिलाषा,
उतना ही रेले तेज ढकेले जाते थे,
क्रय-विक्रय तो ठण्ढे दिल से हो सकता है,
यह तो भागा-भागी की छीना-छोरी थी;
अब मुझसे पूछा जाता है क्या बतलाऊँ
क्या मान अकिंचन बिखराता पथ पर आया,
वह कौन रतन अनमोल मिला ऐसा मुझको,
जिस पर अपना मन प्राण निछावर कर आया,
यह थी तकदीरी बात मुझे गुण दोष न दो
जिसको समझा था सोना, वह मिट्टी निकली,
जिसको समझा था आँसू, वह मोती निकला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।

 

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बस इतना--अब चलना होगा
फिर अपनी-अपनी राह हमें ।

कल ले आई थी खींच, आज
ले चली खींचकर चाह हमें
तुम जान न पाईं मुझे, और
तुम मेरे लिए पहेली थीं;
पर इसका दुख क्या? मिल न सकी
प्रिय जब अपनी ही थाह हमें ।

तुम मुझे भिखारी समझें थीं,
मैंने समझा अधिकार मुझे
तुम आत्म-समर्पण से सिहरीं,
था बना वही तो प्यार मुझे ।
तुम लोक-लाज की चेरी थीं,
मैं अपना ही दीवाना था
ले चलीं पराजय तुम हँसकर,
दे चलीं विजय का भार मुझे ।

सुख से वंचित कर गया सुमुखि,
वह अपना ही अभिमान तुम्हें
अभिशाप बन गया अपना ही
अपनी ममता का ज्ञान तुम्हें
तुम बुरा न मानो, सच कह दूँ,
तुम समझ न पाईं जीवन को
जन-रव के स्वर में भूल गया
अपने प्राणों का गान तुम्हें ।

था प्रेम किया हमने-तुमने
इतना कर लेना याद प्रिये,
बस फिर कर देना वहीं क्षमा
यह पल-भर का उन्माद प्रिये।
फिर मिलना होगा या कि नहीं
हँसकर तो दे लो आज विदा
तुम जहाँ रहो, आबाद रहो,
यह मेरा आशीर्वाद प्रिये ।

 

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किसी के पास खाने के लिये एक वक्त की रोटी नहीं हे …..
किसी के पास रोटी खाने के लिए वक़्त ही नहीं हे …

कोई लाचार हे इस लिए बीमार हे, कोई बीमार हे इस लिये लाचार हे
कोई अपनों के लिए रोटी छोड देता हे, कोई रोटी के लिए अपनों को छोड़ देता हे

ये दुनीया भी कितनी निराली हे .. कभी वक़्त मिले तो सोचना…

कभी छोटी सी चोट लगने पे रोते थे, आज दिल टूट जाने पर भी संभल जाते हें !
पहले हम दोस्तों के सहारे रहते थे, आज दोस्तों की यादो मे रहते है!
पहले लड़ना मारना रोज़ का काम था,
आज एक बार लड़ते हें तो रिश्ते खो जाते हे!

सच में जिन्दगीने बहुत कुछ सिखादिया,
जाने कब हम को इतना बड़ा बना दिया !!!

 

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जब मैं छोटा था,
शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता,
क्या क्या नहीं था वहां,
चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां "मोबाइल शॉप", "विडियो पार्लर" हैं,
फिर भी सब सूना है..
शायद अब दुनिया सिमट रही है...!!

जब मैं छोटा था, शायद शामें बहुत
लम्बी हुआ करती थीं.. मैं हाथ में पतंग की डोर पकड़े,
घंटों उड़ा करता था,
वो लम्बी "साइकिल रेस", वो बचपन के खेल,
वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है.
अब शायद वक्त सिमट रहा है..!!

जब मैं छोटा था,
शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना,
वो दोस्तों के घर का खाना, वो साथ रोना...
अब भी मेरे कई दोस्त हैं, पर दोस्ती जाने कहाँ है,
जब भी "traffic signal" पे मिलते हैं "Hi" हो जाती है,
और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,
होली, दीवाली, जन्मदिन, नए साल पर बस SMS आ जाते हैं,
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..!!

जब मैं छोटा था,तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई, लंगडी टांग, पोषम पा, कट केक,
टिप्पी टीपी टाप. अब internet, office,
से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद ज़िन्दगी बदल रही है...!!

जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है..
जो उस कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर लिखा था ...
"मंजिल तो यही थी,बस जिंदगी गुज़र
गयी मेरी यहाँ आते आते"

ज़िंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है...
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने में ही है..

तमन्नाओं से भरी इस जिंदगी में
हम सिर्फ भाग रहे हैं..
कुछ रफ़्तार धीमी करो, मेरे दोस्त,
और इस ज़िंदगी को जियो खूब जियो मेरे दोस्त...!!

 

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बाप के मरते ही जायदाद यूँ बंटते देखी..
थोड़े से कमरे और गलियारों में बिकते देखी..

बर्तनों-राशनों के हिस्से भी लगाये गए..
थालियाँ,लोटे और कटोरियाँ कटते देखी..

बेचारा चूल्हा भी बच पाया कहाँ फैसले से..
दाल तेरी तो रोटियां बने मेरी देखीं..

चांदी-सोना तो बिके कबके सब पढाई में..
घंटियाँ बैलों के गले की भी उतरते देखीं..

बाप ने छोड़ा कहाँ कुछ भी सिवा कर्जों के..
पूरी पंचायतों में यही शिकायत देखी..

बहन की शादी में भाई ने किये खर्चे बहुत..
एक-एक रूपया,रेजगारी भी गिनते देखी..

बीज दे कौन,खाद किसकी,कौन पानी दे..
पट्टीदारी में पड़ी खेतों की परती देखी..

बाग़ और बगीचों की शपा फिर से पैमाइश हो..
एक-एक पौधे,फल में घटत और बढ़त देखी..

अनाज डेहरी के बँटने चाहिए दाना-दाना..
आजकल चूहों की नीयत भी फिसलते देखी..

मवेशी पहले ही बहुत हैं माँ को रक्खे कहाँ..
बूढ़ी चूड़ियों संग कलाई भी सिसकते देखी...!!

 
 
............................................................................................................................................................................................................................................................भारत में भारतीय का, पूजा में आरती का,

रथ में सारथी का, बड़ा ही महत्व हैं !

पशुओ में गाय का, नाश्ते में चाय का,
व्यापार में आय का, बड़ा ही महत्व हैं !

सर्दी में कोट का, इलेक्शन में वोट का,
जेब में नोट का, बड़ा ही महत्व हैं !

चरित्र में ईमानदारी का, समाज में नारी का
पड़े में यादगारी का, बड़ा ही महत्व हैं !

छुट्टियो में जून का, मनुष्य़ में खून का
स्वेटर में ऊन का, बड़ा ही महत्व हैं !

सर्दियों में रजाई का, खाने में खटाई का,
बर्तन में कड़ाई का, बड़ा ही महत्व हैं !

टी.वी में प्रचार का, खाने में आचार का,
सुनने में समाचार का, बड़ा ही महत्व हैं !

बगीचे में माली का, देवीयों में काली का,
त्योहारो में दीवाली का, बड़ा ही महत्व हैं !

लिखने में कापी का, पीने में काँफी का,
खाने में टाँफी का, बड़ा ही महत्व हैं !

पढाई में शील का, कोर्ट में वकील का,
सफाई में नील का, बड़ा ही महत्व हैं !

दिन में सन्डे का, मास्टर में डंडे का,
भारत में झंडे का, बड़ा ही महत्व हैं !

थाने में इंस्पेकटर का, फिल्म में एक्टर का,
गांव में टैक्टर का, बड़ा ही महत्व हैं !

पर्वत में चोटी का, बहनो में छोटी का,
हाथ में रोटी का, बड़ा ही महत्व हैं !

बाग में फल का, जमीन में धूल का,
u .p में सरकारी स्कूल का, बड़ा ही महत्व हैं !

फूलो में खुशबू का, नदियो में पानी का,
आकाश में बादलों का, बड़ा ही महत्व हैं !

रातों में सपनों का ्बातों में वादों का 
और दोस्तों में आप का बड़ा ही महत्व है