SUCCESS MANTRA

SUCSESS MANTRA
 

दुनिया में हर कोई सफल बनना चाहता है पर कुछ लोग ही सफलता के ऊँचे पायदानों पर पहुँच पाते हैं. जबकि कुछ लोगों को लाख चाहने पर भी सफलता नहीं मिलती. सफल व्यक्ति हमसे अलग नहीं होते. बस ज़रूरत है कुछ खास बातों पर अमल करने की फिर सफलता हमसे भी दूर नहीं रह सकती. 
 
Be Determined : सफलता पाने के लिए दृढ़ संकल्प का होना बहुत आवश्यक है. यह दृढ़ संकल्प ही होता है जिसकी वज़ह से व्यक्ति सफलता के मार्ग में आने वाली हर चुनौती, संकट और विपत्ति का हिम्मत, धैर्य और साहस के साथ सामना कर पाता है. हेलन केलर, पी. टी. उषा, कल्पना चावला, न्यूटन ऐसे कई नाम है हमारे सामने जिन्होंने इतिहास बनाया है क्योंकि वे अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ संकल्पित थे. 
 
Know Yourself : सफलता के लिए ज़रूरी है हम अपनी जमीनी हकीकत पहचाने और अपने शक्ति और सामर्थ्य को भी जाने. सपने अवश्य देखने चाहिए पर जीवन की कठोर सच्चाइयों का ज्ञान भी होना चाहिए. लक्ष्य का निर्धारण हमेशा अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार करना चाहिए अन्यथा असफलता का सामना करना पड़ सकता है और इसकी वज़ह से हम निराशा से गिर सकते हैं. इसलिए सफलता के लिए अपनी strengths and weaknesses जानना बहुत ज़रूरी है. 
 
Be Focused : कई व्यक्ति जीवन भर अपना मार्ग निर्धारित नहीं कर पाते क्योंकि उनका मन संशयग्रस्त रहता है और इधर-उधर दोलायमान रहता है. एक कार्य की ओर अग्रसर होते ही बीच में ही उसे छोड़कर दूसरा कार्य करने लगना जिससे कोई भी कार्य पूरा नहीं हो पाता है. हमें मात्र भावनाओं के भरोसे नहीं रहना चाहिए. क्योंकि अनिर्णय की स्थिति की वज़ह से समय हाथ से निकल जाता है. अतः अपने निर्धारित लक्ष्य पर धयान केन्द्रित कर निर्धारित मार्ग का अनुसरण करना बेहद ज़रूरी है. 
 
Self Confidence : वह आत्मविश्वास ही है जो हमें कभी भी अपने मार्ग से विचलित नहीं होने देता. जिसने आत्मविश्वास खो दिया उसने सब कुछ खो दिया. अतः अपनी शक्तियों को जान कर उन पर भरोसा करना सफलता के लिए बहुत ज़रूरी है. चाहे हममें कितनी भी प्रतिभा हो पर अगर हार का डर हमेशा सताता रहेगा तो हमारी हार निश्चित है. 
 
Have Patience : अत्यधिक अधीरता हमें अपने लक्ष्य पर केन्द्रित नहीं रहने देती. मंजिल मिलने में समय लग सकता है. कई बार विफलता का सामना भी करना पड़ सकता है पर हमने धैर्य नहीं रखा तो हमारी अब तक की गयी सारी मेहनत पर पानी फिर जाता है. नन्ही चींटी ऊंचाई पर चढ़ते समय सेकड़ों बार गिरती है पर अपना लक्ष्य नहीं बदलती और उसे हासिल करके ही दम लेती है. इसलिए धैर्य ओर विश्वास के साथ अपने लक्ष्य पर डंटे रहना बेहद ज़रूरी है. 
 
इन सबके साथ ही सफलता के लिए धारा के विपरीत जाने का साहस होना भी बेहद ज़रूरी है. इतिहास गवाह है सफलता उन्हीं लोगों को मिली है जिन्होंने अपने रास्ते खुद बनाये है. किसी ने सच ही कहा है : 
 
इरादे नेक हो तो सपने साकार होते हैं, 
अगर सच्ची लगन हो तो रास्ते आसान होते हैं.

MANTRA CHOUPAIYA

MANTRA CHOPAIYA

१॰ विपत्ति-नाश के लिये
“राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।”
२॰ संकट-नाश के लिये
“जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।”
३॰ कठिन क्लेश नाश के लिये
“हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥”
४॰ विघ्न शांति के लिये
“सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥”
५॰ खेद नाश के लिये
“जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥”
६॰ चिन्ता की समाप्ति के लिये
“जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥”
७॰ विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये
“दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥”
८॰ मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिये
“हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।”
९॰ विष नाश के लिये
“नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।”
१०॰ अकाल मृत्यु निवारण के लिये
“नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।”
११॰ सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिये / भूत भगाने के लिये
“प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥”
१२॰ नजर झाड़ने के लिये
“स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।”
१३॰ खोयी हुई वस्तु पुनः प्राप्त करने के लिए
“गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।”
१४॰ जीविका प्राप्ति केलिये
“बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।”
१५॰ दरिद्रता मिटाने के लिये
“अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।”
१६॰ लक्ष्मी प्राप्ति के लिये
“जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।”
१७॰ पुत्र प्राप्ति के लिये
“प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।’
१८॰ सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये
“जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।”
१९॰ ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिये
“साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।”
२०॰ सर्व-सुख-प्राप्ति के लिये
सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।
२१॰ मनोरथ-सिद्धि के लिये
“भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।”
२२॰ कुशल-क्षेम के लिये
“भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।”
२३॰ मुकदमा जीतने के लिये
“पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।”
२४॰ शत्रु के सामने जाने के लिये
“कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥”
२५॰ शत्रु को मित्र बनाने के लिये
“गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।”
२६॰ शत्रुतानाश के लिये
“बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥”
२७॰ वार्तालाप में सफ़लता के लिये
“तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥”
२८॰ विवाह के लिये
“तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥”
२९॰ यात्रा सफ़ल होने के लिये
“प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥”
३०॰ परीक्षा / शिक्षा की सफ़लता के लिये
“जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥”

३१॰ आकर्षण के लिये
“जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥”

३२॰ स्नान से पुण्य-लाभ के लिये
“सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।”
३३॰ निन्दा की निवृत्ति के लिये
“राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।
३४॰ विद्या प्राप्ति के लिये
गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥
३५॰ उत्सव होने के लिये
“सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।”
३६॰ यज्ञोपवीत धारण करके उसे सुरक्षित रखने के लिये
“जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।”
३७॰ प्रेम बढाने के लिये
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥
३८॰ कातर की रक्षा के लिये
“मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।”
३९॰ भगवत्स्मरण करते हुए आराम से मरने के लिये
रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग । 
सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ॥
४०॰ विचार शुद्ध करने के लिये
“ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।।”
४१॰ संशय-निवृत्ति के लिये
“राम कथा सुंदर करतारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।।”
४२॰ ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये
” अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।”
४३॰ विरक्ति के लिये
“भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।
सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।”
४४॰ ज्ञान-प्राप्ति के लिये
“छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।”
४५॰ भक्ति की प्राप्ति के लिये
“भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।”
४६॰ श्रीहनुमान् जी को प्रसन्न करने के लिये
“सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।”
४७॰ मोक्ष-प्राप्ति के लिये
“सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। काल सर्प जनु चले सपच्छा।।”
४८॰ श्री सीताराम के दर्शन के लिये
“नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम । 
लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥”
४९॰ श्रीजानकीजी के दर्शन के लिये
“जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।”
५०॰ श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये
“केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।”
५१॰ सहज स्वरुप दर्शन के लिये
“भगत बछल प्रभु कृपा निधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।”